कोयला भई ना राख--भाग(१) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कोयला भई ना राख--भाग(१)

स्टोरीलाइन....
ये कहानी है एक ऐसी बेटी की हैं , जिसने अपने परिवार की खातिर एक ऐसा कदम उठा लिया जो कि किसी साधारण लड़की के वश की बात नहीं थी,पहले तो उसे उसके माँ बाप ने गरीबी की दुहाई देकर उसे इस दलदल में धकेला फिर अपनी ही इज्जत की खातिर उस बेटी से मुँह मोड़ने लगें......
फिर उस बेटी को उस दलदल में धकेलकर उससे किनारा कर लिया और वो लडकी अपनी समस्याओं से सूझती रही ,स्वयं को सम्भालती रही,उसे अपने शरीर से नफरत हो गई थी इसलिए उसने अपने प्रेमी से भी विवाह करने के लिए मना कर दिया,क्यों वो लड़की अपने अतीत को भूलकर अपने जीवन में आगें बढ़ पाईं,देखते हैं कि उस के साथ फिर क्या हुआ?

मुम्बई का नानावती हाँस्पिटल,जहाँ अम्बिका एक प्राइवेट और लग्जरी रूम में अपने बेड से टिककर खिड़की की ओर झाँकते हुए आसमान में उड़ते हुए पंक्षियों को देख रही है और सोच रही है कितने खुश हैं ये ,इन्हें कोई भी सामाजिक बंधन नहीं,जब चाहें किसी भी साथी के साथ फुर्र से उड़ जाते हैं,एक मैं हूँ जिसके पास सब कुछ है,लेकिन इच्छा नहीं है और जीने की,इतनी शर्मिन्दा हूँ मैं स्वयं से कि नज़रें नहीं मिला सकती,निराधार जीवन जिएं जा रही हूँ,
और तभी एक नर्स कमरें में आकर उससे बोली.....
क्या आप दोनों बच्चों से मिलना चाहेगीं?
जी..नहीं! मुझे उन बच्चों में कोई दिलचस्पी नहीं,अम्बिका बोली।।
आपने उन बच्चों को जन्म दिया,क्या आपकी इच्छा नहीं उनसे मिलने की?नर्स ने दोबारा पूछा।।
मैंने कहा ना! नहीं! अम्बिका ने रुखाई से जवाब दिया....
आपसे डाँक्टर मिलना चाहतीं हैं,उन्होंने पूछा है कि क्या वो आपके कमरें में आ सकतीं हैं? नर्स ने पूछा।।
हाँ! उनसे कहो कि वें आ सकतीं हैं,अम्बिका बोली।।
कुछ ही देर में डा. शैलजा सिंह अम्बिका के कमरें में आईं और उसके पास आकर बोलीं....
और मैडम!कैसी हो?
और कैसी हो सकती हूँ? वैसी ही लाचार और मजबूर,अम्बिका बोली।।
ये कैसीं बातें कर रही हो अम्बिका? डा.शैलजा बोलीं।।
और क्या लाचार ही तो हूँ?जो अपने लिए कुछ ना कर पाएं वो लाचार ही तो कहलाता है,अम्बिका बोली।।
अम्बिका की बात सुनकर डा. शैलजा बोलीं....
अम्बिका! तुम ये क्यों नहीं सोचती कि तुम कितने लोगों का भला कर चुकी हो,तुम्हारी वजह से आज कितने लोंगो को ये खुशी हासिल हो पाई है....
और मेरी खुशी.....मेरी खुशी का क्या डाक्टर? अम्बिका ने पूछा।।
डा. शैलजा ने अम्बिका से बहस ना करने में ही भलाई समझी और एक पैकेट उसे पकड़ाते हुए बोली...
ये लो बीस लाख रूपए,तुम्हारी कमाई,एक और कस्टमर मिले हैं,रहने वाले तो भारत के हैं लेकिन दुबाई में रहते हैं कहते हैं कि उनका काम करोगी तो तुम्हें मालामाल कर देगें.....
ये सुनते ही अम्बिका खीझ पड़ी और बोली.....
मैं अपनी छुट्टियांँ मनाने अण्डमान जा रही हूँ,मुझे भी तो थोड़ी साँस चाहिए....
जैसी तुम्हारी मर्जी,लेकिन अगर इरादा बदल जाएं तो बता देना,डा.शैलजा बोलीं।।
एक बात पूछूँ डाक्टर,अम्बिका बोली....
हाँ! पूछो,शैलजा बोली।।
आपको भी तो कुछ कमीशन मिलता ही होगा,अम्बिका बोली।।
इस दुनिया में बिना फायदे के कोई भी किसी का काम नहीं करता,डा.शैलजा बोलीं।।
वही तो मैं समझूँ कि आप मुझसे इतनी हमदर्दी क्यों दिखातीं हैं? अम्बिका बोली।।
मैं भी एक औरत हूँ शैलजा और सालों तक मैनें भी माँ ना बन पाने का दर्द झेला है,एक औरत को बच्चा ना होने पर समाज कैसे कैसे नामों से पुकारता है तुम ये नहीं समझ सकतीं,एक औरत बिना बच्चों के पर कटी चिड़िया होती है,डाक्टर शैलजा बोली।।
तब अम्बिका बोली....
सच! डाक्टर साहिबा! कैसी अजीब है ये दुनिया,शादी के बाद एक औरत माँ बनती है तो उसे और उसके बच्चें को सिर आँखों पर बैठा लिया जाता है और अगर कोई बिना शादी के माँ बनता है तो उसे समाज और दिलों से बहिष्कृत कर दिया जाता है....
अम्बिका! इस दुनिया के बारें में जितना ज्यादा सोचोगी तो उलझती जाओगी,डाक्टर शैलजा बोलीं।।
अच्छा छोड़िए इन सब बातों को शायद आप सच कहतीं हैं,अम्बिका बोली।।
अच्छा! ये अपने रूपए सम्भालकर रख लो,मैं अब जाती हूँ ,डाक्टर शैलजा बोली।।
मैं इनमें से दस लाख ले लेती हूँ बाकी रूपए आप मेरे घर भेज दीजिए,पूर्णिमा की शादी है दो महीने बाद उसकी शादी में काम आऐगें,अम्बिका बोली।।
तो तुम्हीं क्यों नहीं दे आती अपने घर जाकर? डाक्टर बोलीं।।
मेरा मन नहीं करता वहाँ जाने को,अम्मा बाबा की शकलें देखती हूँ तो मुझे अपना अतीत याद आने लगता है,अम्बिका बोली।।
तो क्या छोटी बहन की शादी में भी ना जाओगी? डाक्टर ने पूछा।।
पता नहीं,सोचा नहीं अब तक,अम्बिका बोली।।
ये क्या बात हुई? डाँक्टर बोलीं।।
बस,कुछ दिन सिर्फ़ अपने साथ बिताना चाहती हूँ,सबसे दूर सबसे अलग,अम्बिका बोली।।
उन बच्चों से भी नहीं मिली जिन्हें तुमने जन्म दिया है,डाक्टर बोली।।
मन नहीं था मेरा,हर बार तो ऐसा होता है,वो जब मेरे भीतर गति करते थे तो एक प्यारा सा एहसास होता था लेकिन फिर दूसरे पल मैं ये सोचती थी कि मत खुश हो,ये तेरे नहीं हैं तू किसी और के बीज को अपने भीतर रूप दे रही हैं,ये बाहर आते ही तुझसे छीन लिए जाऐंगे,फिर ये सोचकर मैं सहम जाती थी,इसलिए ममता को मैनें अपने एहसासों के साथ शामिल ही नहीं होने दिया,अम्बिका बोली।।
पता है अम्बिका तुम्हारे नाम का मतलब ही माँ होता है,तुमने कितनी औरतों को ये खुशी देकर उनकी दुआएं ली हैं,डाक्टर बोली।।
दुआएँ लेकर क्या करूँगी डाक्टर? जिसकी जिन्दगी ही एक बददुआ से कम ना हो,अम्बिका बोली।।
तुम्हें समझाना बेकार है,डाक्टर बोली।।
मुझे मत समझाइए डाक्टर! क्यों कि मैं कुछ समझना ही नहीं चाहती,अम्बिका बोली।।
तो कब जा रही हो अण्डमान,?डाक्टर ने बात पलटते हुए अम्बिका से पूछा।।
देखती हूँ,जल्द ही जाने का सोच रही हूँ,अम्बिका बोली।।
ठीक है तो मैं अब चलती हूँ और आधे पैसे तुम्हारे घर भिजवा दूँगीं और फिर आधे पैसे लेकर डाक्टर कमरें से बाहर चली गई.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....